जब कभी भी बीमार या रोगग्रस्त मरीज के अस्पताल में खून की जांच (blood sample) आदि जांच की जाती है तब रक्त से संबंधित कुछ और भी फैक्टर या जानकारी रिपोर्ट में देखने को मिलती है। जो मानव रक्त से संबंधित जुड़ी हुई होती है।
मानव रक्त (खून) से जुड़ी कई अहम बाते, शरीर मे रक्त की मात्रा और प्लाज्मा (Plasma) और उनके मानव शरीर मे होने वाले कार्य, रुधिराणु (Blood corpuscles) लाल रक्त कण और कार्य (RBCs), श्वेत रक्त कणिकाएं (WBC), रक्त बिंबाणु- (Blood Platelets or Thrombocytes), आर एच- तत्व (Rh factor), एंटीजन, एंटीबॉडी ब्लड ग्रुप आदि रक्त से जुड़ी जानकारी टॉपिक के बारे मे जानते है-
मानव रक्त:-
मानव शरीर में रक्त की मात्रा शरीर के भार का लगभग 7% होती है।
रक्त एक क्षारीय विलियन का होता है। जिसका पीएच मान 7.4 होता है ।
एक वयस्क मनुष्य में औसतन 5 से 6 लीटर रक्त पाया जाता है।
महिलाओं में पुरुषों की तुलना में 1/2 लीटर रक्त कम होता है।
रक्त मे दो प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं-
प्लाज्मा के कार्य:- बचे हुए भोजन एवं हार्मोन का शरीर में संवहन प्लाज्मा के द्वारा ही होता है।
सेरम- Serum:- जब प्लाज्मा में से फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन निकाल लिया जाता है तो शेष प्लाज्मा को सेरम कहा जाता है।
रुधिराणु- Blood corpuscles:- यह रक्त का शेष 40% भाग होता है। इसे तीन भागों में बांटा गया है-
लाल रक्त कण:- (RBCs) - Red Blood Corpuscles Or Erythrocytes) :-
स्तनधारियों के लाल रक्त कण उभयावतल होते हैं। इसमें केंद्रक नहीं होता है। अपवाद- ऊंट एवं लामा नामक स्तनधारी की आरबीसीएस में केंद्रक पाया जाता है।
आरबीसीएस का निर्माण अस्थिमज्जा (Bone marrow) में होता है। प्रोटीन आयरन विटामिन B12 एवं फोलिक अम्ल RBCs के निर्माण में सहायक होते हैं।
इसका जीवनकाल 20 से 120 दिन का होता है।
इसकी मृत्यु यकृत (लीवर) और प्लीहा में होता है। इसलिए लीवर और प्लीहा (spleen) को आरबीसीएस का कब्र कहा जाता है।
हीमोग्लोबिन में पाया जाने वाला लौह यौगिक हीमैटिन (Haeamatin) है।
आरबीसीएस का मुख्य कार्य:-
शरीर की हर कोशिका में ऑक्सीजन पहुंचाना एवं कार्बन डाइऑक्साइड को वापस लाना है।हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने पर रक्तक्षीणता (Anaemia) रोग हो जाता है।
सोते वक्त RBCs, 5 परसेंट कम हो जाता है एवं जो लोग 4200 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं उनके आरबीसीएस में 30 परसेंट की वृद्धि हो जाती है।
आरबीसीएस की संख्या हीमोसाइटोमीटर से ज्ञात की जाती है ।
श्वेत रक्त कणिकाएं WBC-(White Blood Corpuscles Or Leucocytes) :-
आकार और रचना में यह अमीबा के समान होता है इसमें केंद्रक रहता है।
इसका निर्माण अस्थिमज्जा लिंफ नोड (lymph node) और कभी-कभी यकृत (लीवर) एवं प्लीहा में भी होता है।
इसका जीवनकाल दो-चार दिन का होता है। इसकी मृत्यु रक्त में ही हो जाती है।
इसका मुख्य कार्य शरीर को रोगों के संक्रमण से बचाना होता है।
डब्ल्यूबीसी का सबसे अधिक भाग 60 से 70 पर्सेंट न्यूट्रोफिल्स कणिकाओं का बना होता है। न्यूट्रोफिल्स कणिकाएं रोगाणुओं तथा जीवाणुओं का भक्षण करती है ।
आरबीसी एवं डब्ल्यूबीसी का अनुपात 600:1 होता है।
रक्त बिंबाणु- (Blood Platelets or Thrombocytes) :- यह केवल मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों के रक्त में पाया जाता है।
इसमें केंद्रक नहीं होता इसका निर्माण अस्थिमज्जा में होता है।
इसका जीवनकाल 3 से 5 दिन का होता है इसकी मृत्यु प्लीहा (spleen) में होती है।
इसका मुख्य कार्य रक्त के थक्का बनाने में मदद करना होता है।
रक्त के कार्य:-
शरीर के वातावरण को स्थाई बनाए रखना तथा घावों को भरना।
रक्त का थक्का बनाना।
ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड भोजन उत्सर्जी पदार्थ एवं हार्मोन का संवहन करना।
लैंगिक वरण में सहायता करना तथा विभिन्न अंगों में सहयोग स्थापित करना।
विटामिन k रक्त का थक्का बनाने में सहायक होता है ।
सामान्यता रक्त का थक्का 2- 5 मिनट में बन जाता है रक्त का थक्का बनाने के लिए अनिवार्य प्रोटीन फाइब्रोनोजन है।
मानव के रक्त वर्ग-Blood Group
रक्त समूह की खोज 1900 ई. में कॉल लैंड स्टीनर ने की थी। इसके लिए उन्हें सन 1930 ईस्वी में नोबेल पुरस्कार मिला।मनुष्य में रक्तो की भिन्नता का मुख्य कारण लाल रक्त कणिकाएं आरबीसी में पाई जाने वाली ग्लाइको प्रोटीन है जिसे एंटीजन (Antigen) कहते हैं।
एंटीजन दो प्रकार के होते हैं- एंटीजन A एवं एंटीजन B।
एंटीजन या ग्लाइको प्रोटीन की उपस्थिति के कारण के आधार पर मनुष्य में चार प्रकार के रुधिर होते हैं-
जिनमें एंटीजन A होता है वह रुधिर वर्ग A. जिनमें एंटीजन B होता है वह रुधिर वर्ग B. जिनमे एंटीजन A एवं B दोनों होते हैं वह रुधिर वर्ग AB. जिनमें दोनों में से कोई एंटीजन नहीं होता वह रुधिर वर्ग O,
किसी एंटीजन की अनुपस्थिति में एक विपरीत प्रकार की प्रोटीन रुधिर प्लाज्मा में पाई जाती है। इसको एंटीबॉडी कहते हैं। यह भी दो प्रकार का होता है- एंटीबॉडी a और एंटीबॉडी b।
रक्त का आधान-Blood transfusion:- एंटीजन A एवं एंटीबॉडी a एंटीजन B एवं एंटीबॉडी b एक साथ नहीं रह सकते हैं। ऐसा होने पर ये आपस में मिलकर अत्यधिक चिपचिपे हो जाते हैं जिससे रक्त नष्ट हो जाता है। इसे रक्त का अभिश्लेषण कहते हैं। रक्त आधान में एंटीजन तथा एंटीबॉडी का ऐसा तालमेल करना चाहिए जिससे रक्त का अभिश्लेषण ना हो सके।
रक्त समूह O को सर्वदाता universal donor रक्त समूह कहते हैं क्योंकि इसमें कोई एंटीजन नहीं होता है एवं रक्त समूह ए बी, को सर्वग्रहता रक्त समूह कहते हैं क्योंकि इसमें कोई एंटीबॉडी नहीं होती है।
आर एच- तत्व (Rh factor) :-
1940 ईस्वी में लैंडस्टीनर और वीनर ने रुधिर में एक अन्य प्रकार के एंटीजन का पता लगाया। उन्होंने रीसस बंदर में इस तत्व का पता लगाया। इसलिए इसे आरएच फैक्टर कहते हैं जिन व्यक्तियों के रक्त में यह तत्व पाया जाता है उनका रक्त Rh- सहित (आरएच पॉजिटिव) कहलाता है तथा जिनमें नहीं पाया जाता उनका रक्त आर एच- रहित (आर एच नेगेटिव) कहलाता है।रक्त आधान के समय आर एच- फैक्टर की भी जांच की जाती है। Rh+ को Rh+ का रक्त एवं Rh- को Rh- (माइनस) रक्त ही दिया जाता है।
यदि आर एच प्लस रक्त वर्ग का रक्त आर एच माइनस रक्त वर्ग वाले व्यक्ति को दिया जाता हो तो प्रथम बार कम मात्रा होने के कारण कोई प्रभाव नहीं पड़ता किंतु जब दूसरी बार इसी प्रकार रक्त आधान किया गया तो अभिश्लेषण (Agglutination) के कारण आर एच माइनस वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
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