किसी भी संरचनाओ निर्माण मे, सिविल इंजीनियर का प्रमुख कार्य निर्माण हेतु वांछित सामग्रियों के संबंध में जानकारी या ध्यान आवश्यक होता है क्योंकि प्रत्येक निर्माण के लिए कुछ ना कुछ सामग्री आवश्यक होती है निर्माण अथवा उत्पादन की गुणवत्ता उत्तम रखने के लिए हमें आवश्यक सामग्री के विषय में पूर्ण जानकारी होना चाहिए ताकि सामग्री का चयन करते समय कोई त्रुटि ना हो. भवन, पुल, सड़क, बांध आदि के निर्माण हेतु ईट, पत्थर, सीमेंट, लोहा, लकड़ी, बालू आदि कच्चे माल की आवश्यकता होती हैं. इन सामग्रियों के चयन में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है ताकि निर्माण कार्य उत्तम हो सके जैसी सामग्री निर्माण में प्रयोग की जाएगी उसकी आयु सामग्री के चयन पर निर्भर करेगा ईट यांत्रिकी पदार्थों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है.
वर्तमान समय में अधिकता संरचनाओं के निर्माण में ईट (Brick) का प्रयोग किया जाता है. भवनों में दीवारों पर क्षेत्र आदि सभी भागों में इसका प्रयोग किया जाता है.
ईटों को बनाने की प्रक्रिया, ब्रिक्स मिट्टी के तत्व, ईटों (Brick)का वर्गीकरण,विशेषता. भारतीय मानक संस्थान (आई एस आई)आदि.
ईट (Brick) बनाने के लिए मिट्टी के प्रमुख कोन से तत्व होते हैं?
ईट बनाने वाली मिट्टी के तत्व (element of brick) :-
ईटों का निर्माण एक विशेष प्रकार की मिट्टी से किया जाता है. ईट (Brick) बनाई जाने वाली मिट्टी में लगभग 1/5 भाग चिकनी मिट्टी, 3/5 भाग वालु और शेष, 1/5 भाग चूना, आयरन-ऑक्साइड, मैग्नीशियम,पोटेशियम, सोडियम, आदि पदार्थ होते हैं. इन प्रत्येक पदार्थों का अपना एक विशेष महत्व होता है.
चिकनी मिट्टी ईट बनाने वाली मिट्टी का एक महत्वपूर्ण अंश है क्योंकि इसी के द्वारा Brick का निर्माण होता है इस मिट्टी में आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर इसे इच्छा अनुसार ढाला जा सकता है ईट बनाने वाली मिट्टी में चिकनी मिट्टी की मात्रा अधिक होने पर ईट डालने व सुखाने के बाद फट जाती है.
बालू (Sand) :-
ईट बनाने वाली मिट्टी का महत्वपूर्ण अंश है जो ईटों को सिकुड़ने, टेढ़ा होने व फटने से बचाते हैं. बालू का कार्य चिकनी मिट्टी के कणों को आपस में जोड़ना भी होता है. आवश्यकता से अधिक बालू होने से ईटों के टूटने का भय रहता है.
चुना (Lime):-
ईट बनाने वाली मिट्टी में गालक की तरह कार्य करता है इसकी उपस्थिति में ईट फटने टेढ़ी होने सिकुड़ने से बचती हैं. चुने की मात्रा अधिक होने से ईट (Brick) फट सकते हैं.
मैग्नीशियम (Magnesium) :-
मैग्नीशियम का कार्य ईटों को पीला रंग प्रदान करता है. साथ ही साथ यह बालू के कणों को कम तापक्रम में पिघलाने का कार्य करता है.
आयरनऑक्साइड (iron oxide) :-
ईट बनाने वाली मिट्टी में आयरन ऑक्साइड भी रहता है. इसकी मात्रा 5 से 7% तक होती है. आयरन ऑक्साइड का कार्य मिट्टी को लाल ईट रंग प्रदान करता है. मिट्टी में इसकी मात्रा अधिक होने पर Brick काली पड़ जाती हैं और कम होने पर ईट पिली रह जाती है.
ईट बनाने वाली मिट्टी का चयन करते समय उपरोक्त सभी तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए की यह आवश्यक मात्रा में है या नहीं. क्योंकि आवश्यकता से अधिक या कम होने पर Brick के निर्माण में विपरीत प्रभाव पड़ता है. साथ ही साथ ईट बनाने वाली मिट्टी में हानिकारक तत्व जैसे कंकड़, पत्थर, घास, फूस आदि नहीं होना चाहिए.
ईटों (Brick) का वर्गीकरण (Classification of Bricks):-
सामान्यतः ईटों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-
प्रथम श्रेणी ईट क्या होती हैं?
प्रथम श्रेणी की ईट (First class Brick):-
भट्टी में जलाने के बाद प्राप्त होने वाली वह ईट जिनके किनारे सीधे, सतह चिकनी होती है तथा ईट लाल रंग ग्रहण किए हुए रहती है।
प्रथम श्रेणी की ईटो की निम्न विशेषता होती हैं :-
1.यदि ईट को नाखून से खुरचा जाए तो उस पर निशान नहीं बनना चाहिए
यह ईट लाल रंग ग्रहण युक्त होना चाहिए.
दो प्रथम श्रेणी की ईट को आपस में टकराया जाए तो धातु के समान टन की आवाज आनी चाहिये.
ईट को 2m की उचाई से गिराने पर टूटना नहीं चाहिए या दो ईटों को मिलाकर 1 मीटर की ऊंचाई से गिराने पर ऊपर की ईट टूटने नहीं चाहिए .
ईट की crushing strength करीब 70kg/sq.cm होनी चाहिए. द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी की ईंटों में उपरोक्त गुण क्रमानुसार शीथील होते हैं.
प्रथम श्रेणी की ईट को यदि 6 घंटे तक पानी में डुबोकर रखा जाए तो यह अपने भार का 1/ 6 से अधिक पानी नहीं सोखना चाहिए.
इसकी संपीड़न समर्थता (compression strength) 440 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है
इन सारे लक्षण मौजूद होने पर ही किसी Brick को प्रथम श्रेणी की ईट कहा जा सकता है. इन्हीं का प्रयोग इंजीनियरिंग कार्यों के लिए जैसे नीव पानी वाले स्थानों टीप (pointing) की जाने वाली दीवारों में किया जाता है.
द्वितीय श्रेणी ईट (Second class Brick) :-
द्वितीय श्रेणी की ईट प्रथम श्रेणी की ईंटों की तरह होती है. रंग तथा मजबूती में यह प्रथम श्रेणी की ईंटों से अलग होती है परंतु बनावट में इसके किनारे उतनी ही सीधे नहीं होते जितने की प्रथम श्रेणी की ईंटों के होते हैं. भट्टे में प्राप्त ईंटों जिनके किनारे सीध में नहीं होते या थोड़े बहुत कट जाते हैं तथा जिनकी सतह चिकनी नहीं होती द्वितीय श्रेणी की ईट कहलाती है. अधिकतर निर्माण कार्यों में इन्हीं ईटो का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह भी प्रथम श्रेणी की ईंटों के बराबर क्षमता रखते हैं.
तृतीय श्रेणी की ईट (Third Class brick):-
तृतीय श्रेणी की ईट के विभिन्न लक्षण होते हैं
भट्टे में कम जलने के कारण इनका रंग पीला पड़ जाता है.
इनकी सतह खुरदरी और किनारे टेढ़े- मेढ़े होते हैं.
दोनों को आपस में टकराने से फीकी (Dull sound) की आवाज आती है.
ईट मजबूती में बहुत कमजोर होती हैं तथा अधिक पानी सोखती हैं.
इसकी संपीड़न समर्थता 35 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है.
तृतीय श्रेणी के ईट का उपयोग महत्वपूर्ण कार्यों जैसे - अस्थाई निर्माण कार्य सड़क आदि में किया जाता है.
यह तीन प्रकार की ईंटों के अतिरिक्त भट्टे से प्राप्त ईट होती हैं जो अधिक जल जाती है. अधिक जली (over Burnt brick) कहलाती हैं. अधिक जल जाने के कारण उनका रंग काला पड़ जाता है मजबूती में यह प्रथम श्रेणी की ईट से भी अधिक सामर्थ्यवान हो जाती हैं पर इनका प्रयोग नीव, फर्स कंक्रीट की रोली बनाने में किया जाता है.
ईटों को बनाने की क्या प्रक्रियाएं होती हैं?
ईटों को बनाने की प्रक्रिया (Process of making bricks) :-
ईटों को बनाने की मुख्यता चार प्रक्रियाएं होती हैं.
1.मिट्टी प्राप्त होने वाले स्थल का चुनाव व मिट्टी तैयार करना
2.ईटों को ढालना 3.सुखाना और 4.पकाना
1:- मिट्टी प्राप्त होने वाले स्थल का चुनाव या मिट्टी तैयार करना ईटों के निर्माण के लिए सर्वप्रथम ईटों के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन करना होता है. ऐसी मिट्टी जिसमें उक्त वर्णित आवश्यक तत्व विद्यमान हो वही मिट्टी ईट बनाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है. ऐसी मिट्टी का चुनाव हो जाने के पश्चात मिट्टी को खोदे जाने वाले स्थान पर 15 से 20 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे किये जाते हैं. इसके बाद इन गड्ढों के नीचे से मिट्टी निकाल कर 1 से 3 दिनों तक खुले वातावरण में छोड़ दिया जाता है. इस प्रकार प्राप्त मिट्टी में आवश्यक मात्रा में पानी मिलाकर खूब गूथ लिया जाता है यह कार्य पशुओं, मनुष्य के पैरों तले से कूचल कर किया जाता है या फिर कुछ स्थानों पर मिट्टी को पग मिल में डालकर भी गूथा जाता है. पग मिल लोहे का एक शंकु नुमा ड्रम होता है जो ऊपर नीचे से खुला रहता है. जो कार्य विधि को सरल बनाता है.
ईटों को ढालना (Molding of bricks) :-
पग मील या अन्य तरीके से तैयार की गई मिट्टी को ईटों को आकार देने के लिए लोहे या लकड़ी के विशेष सांचे में डाला जाता है. इस क्रिया को ईटों की ढलाई करना कहते हैं. ईटों को ढालने के लिए बनाए जाने वाले सांचे अधिकतर लकड़ी या लोहे के निर्मित होते हैं. इनका आकार ईटों के आकार पर निर्भर होता है. आई एस आई(ISI) द्वारा निर्धारित साइज 19×9×9 सेंटीमीटर आकार की ईंटों के निर्माण के लिए सांचे का आकार 21 सेंटीमीटर लंबा 10 सेंटीमीटर चौड़ा और 10 सेंटीमीटर गहरा होना चाहिए तथा सांचा ऊपर व नीचे से खुला रहता है.
ढालाई करने के लिए समतल जगह का चुनाव करके बालू बिछा दिया जाता है ताकि जमीन पर ना चिपके अब गुथी हुई मिट्टी को सांचे में जोर से पटका जाता है ताकि पूरा सांचा मिट्टी से भर जाए सांचे के ऊपर निकली मिट्टी को लकड़ी और लोहे के तार से हटा दिया जाता है. अब सांचे को हटा लिया जाता है जिससे ढली गई मिट्टी जमीन में रह जाती है यह क्रिया लगातार अपनाई जाती है. ईट (Brick) में फ्रॉक (frog) बनाने के लिए लकड़ी के स्टॉक बोर्ड का प्रयोग किया जाता है इनका आकार सांचे के आंतरिक माप के बराबर होता है इस के मध्य भाग ऊपर की ओर उठा रहता है जिसमें उल्टे अक्षर खुदे रहते हैं. सांचे में मिट्टी डालने से पहले स्टॉक बोर्ड (stock board) को सांचे के नीचे रखा जाता है. ईटों की ढलाई का कार्य मशीन द्वारा भी किया जाता है. ढलाई की क्रिया करने के पश्चात ईटों को सुखाया जाता है.
ईटों को सुखाना (Drying of Brick) :-
ईटों के डालने के कुछ दिनों बाद जब ईटें उठाने के लायक हो जाती हैं तो उन्हें एक स्थान पर एकत्रित करके एक के ऊपर एक इस प्रकार रखा जाता है कि उनके बीच हवा के आवागमन के लिए खाली स्थान रहे. इस प्रकार रखें, इन ईटों के ढेर को stacks कहते हैं. यह समानता 3 मीटर लंबे और ईट की दुगनी लंबाई के बराबर चौड़े होते हैं. इस प्रकार कई stacks बनाकर ईटो को सुखाया जाता है.
ईटों को पकाना (Burning of Brick) :-
खुली हवा में ईटों को सुखाने के पश्चात ईटों को पजावे (क्लैंप) या भट्टे मे पकाया जाता है. क्लेम में ईटों को पकाने की विधि आमतौर पर पजावे का कोई निश्चित आकार नहीं है. देश के विभिन्न राज्यों में इनका आकार अलग-अलग रखा जाता है. सामान्यतः इसके निर्माण के लिए लगभग 5 मीटर ऊंची दीवार बना दी जाती है. इसकी लंबाई में धरती तल पर कुछ मिट्टी भरकर ईटों तथा इंधन की तहे लगाने के लिए कुछ झुकाव दे दिया जाता है. पजावे में सर्वप्रथम 1 तह इंधन की रखकर उसके ऊपर तीन या चार तहे सुखाई गई ईटों की रखी जाती हैं. ईटों की तह लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि दोनों के बीच रिक्त स्थान बना रहे इसी प्रकार एक के बाद एक इंधन और ईट की तहे बिछा दी जाती है. जब पजावे (clamp) का चौथाई भाग खाली रह जाता है तो उसमें नीचे से आग लगा दी जाती है तत्पश्चात पजावे को पूरा भर दिया जाता है. पजावे को गर्म हवाओं के बाहर निकलने से बचाने के लिए मिट्टी के मसाले का प्लास्टर कर दिया जाता है. पजावे में ईटों को लगाने की लगभग 4 से 6 सप्ताह तक लगातार आग सुलगती रहती है तथा इतना ही समय इसे ठंडा होने में लगता है. जब पजावे (clamp) पूर्ण रूप से ठंडा हो जाए तभी ऊपर से मिट्टी की परत हटाकर ईट निकाली जाती है. एक पजामे में अधिक से अधिक 1 लाख तक ईटें पकाई जा सकती है.
भारतीय मानक संस्थान (आई एस आई) द्वारा
निर्धारित ईटों का भार व नाप भारत के विभिन्न प्रांतों में अलग- अलग आकार की ईंटों का निर्माण किया जाता है. लेकिन अधिकतर ईटों की लंबाई उसकी चौड़ाई की दुगनी होती है. भारतीय मानक संस्थान ने ईटों का साइज 19×9×9 सेंटीमीटर निर्धारित किया है. इस साइज की ईंटों का भार लगभग 3 (kg) किलोग्राम होता है. और 1 घन (क्यूबिक) मीटर चिनाई करने के लिए लगभग 500 ईटों की आवश्यकता पड़ती है.
टाइल्स (Tile):-
टाइल्स की निर्माण विधि भी लगभग ईट बनाने की विधि के समान है लेकिन आकार में यह ईटों से भिन्न होती हैं. आकार मे यह फर्श और दीवारों में लगाने वाली टाइल्स वर्गाकार आयताकार, वृत्ताकार, अष्टभुजाकार आदि आकृति की बनाई जाती है. छतों में लगाने वाली टाइल से अलग-अलग आकार की होती हैं. टाइल्स का प्रयोग दीवारों वह फरसों में किया जाता है. वर्तमान समय में बाजार में विभिन्न प्रकार की टाइल से उपलब्ध हैं मध्यम श्रेणी के निवास स्थानों स्नानघर, रसोई आदि में भी इनका प्रचलन हो गया.
धन्यवाद!
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